राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक आदेश में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के तहत 162 साल पुराने राजद्रोह कानून को तब तक स्थगित रखा जाना चाहिए. जब तक कि केंद्र सरकार इस प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती.
एक अंतरिम आदेश में, कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से तब तक इस प्रावधान के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करने को कहा, जब तक इस पर पुनर्विचार नहीं हो जाता. भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि धारा 124 ए के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए.
‘जमानत के लिए आ सकते हैं कोर्ट’
बेंच ने आदेश में कहा, हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी प्राथमिकी दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जबरन कदम उठाने से परहेज करेंगी. कोर्ट ने कहा कि जो लोग पहले से ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत बुक हैं और जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अगर कोई नया मामला दर्ज किया जाता है तो संबंधित पक्ष राहत पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है और अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे कोर्ट से पारित आदेश को ध्यान में रखते हुए मांगी गई राहत की जांच करें.